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14 Oct 2024 · 1 min read

जीवन सरल नही

जब से होश संभाला मैंने
सबको कहते यह पाया है,
जीवन सरल नही निर्मेष
माँ ने यही गुनगुनाया है।

ढली शाम उस चौबारे पर
दीपक की थी लौ जलती,
रामायण संग जुटते लोग
पावन कथा राम की होती।

मैं अज्ञानी बस यूँ पढ़ता
दादा अर्थ बताते जाते,
रामकथा की पावन घुट्टी
को मेरे अंदर पैठाते जाते।

सार कथा की आज सुनाता
दादा ने मुझे सुनाया जो,
राम कथा के बिम्बों को
नैतिकता के प्रतिमानों को।

ज्ञान तपों को जो कोई बदले
सुंदर चरित्र में वह अपने,
मर्यादित जीवन जीता वह
जैसे जिये राम थे अपने।

उल्टा इसका किया सदा
लंकापती दशानन ने,
नही ढाल पाया लंकेश
अर्जित ज्ञान निज चरित्र में।

परिणाम जानते आज सभी
सदियों से अभिशापित है,
त्रेता से कलयुग तक जलना
उसका पुतला निर्वासित है।

बेशक विद्वान विपुल था वह
पर सदा घमंड में जीता था,
शत्रु की पक्की आहट को
वह हल्के बड़े ही लेता था।

नही ज्ञान योगी उस जैसा
पर चरित्र उसका संदिग्ध,
भेजा लखन को श्रीराम ने
लेने को था ज्ञान विविध।

सदियां जाने ना और अभी
कितनी ही बीतेगी ऐसे
पता नही कब तक निर्मेष
मिलेगी जलते मुक्ति उसे।

निर्मेष

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