जीवन सत्य
जीवन सत्य
मन भटका सोच भटकी
इरादे भटके नियत भटकी
भटक गया इस संसार में
सही या ग़लत के मझधार में
ढूँढ रहा वह तिनका
जिसका ले सहारा
पा जाएगा किनारा
पर जाना किस पार तुझे
उस पार तुम्हें यूँ लगता
जैसे कोई खींच बुलाता
इंद्रधनुषी सपने दिखलाता
बजती मृदु वीणा सी झंकार
मादक योवन करता पुकार
जीवन लगता लहराता चित्वन
सब कुछ निर्मल सब कुछ पावन
लेकिन क्या ऐसा हो पाया है
उस पार नियति का खेल कैसा
कौन लौट आ बता पाया है
सब मृग तृष्णा है छलावा है
जीवन का सत्य
इस पार का बुलावा है
रेखा