जीवन संध्या का क्षण
जीवन संध्या का क्षण
कितना मार्मिक कितना विलक्षण।
यकायक प्रतयक्ष हो गईं स्मृतियाँ
सुख और दुख की कई आकृतियाँ।
घटनाओं का जीवन में जो सरोकार रहा
भले ही कुछ पे न अधिकार रहा ।
जिन्दगी बिखर गई कब की
चिरसंगिनी बिछर गई कब की ।
अकेला हूँ खुद को कोसता हूँ
अब अन्तिम प्रस्थान की बाट जोहता हूँ ।