“जीवन संचालन की विधिता”
जीवन संचालन की विधिता
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जिस परिवेश में जो रहा दिखता,
भाव संस्कृति उसकी उसमें दिखती।
भाव विचारों की मौलिक संस्कृति,
ज्ञान विधा से कुछ समझ नहीं आता।
अच्छीे और बुरी सी स्थित,
आम क्रत्यकारी इच्छित चाह से करते।
वैज्ञानिक संस्कृति जो विधा से समझते,
दुख परेशानी को विधि से देखते।
आम संस्कृति जो विधा से चलती,
लाभ हानि मन भाव उसमें रहते।
आसय से विधा में संस्कृति नहीं जमती,
द्रश्य दिखाकर वे दूर भाग जाते।
आत्मविश्वास जितनी शक्ति में होता,
उतनी गहराई में संस्कृति विधि चलाते।
श्वांस द्रष्टता योग संस्कृति से करके,
नैतिक विधा चलकर विशिष्ट बन जाते।
योग संस्कृति जो नैतिकता बनाती,
कर्म धर्म कार्य में शिष्टता दर्शाती।
ब्यापक लाभ की संस्कृति दिखाकर,
सामाजिक प्रबलता उसको अपनाती।
बहुत छा जाते हैं लौकिक क्रिया में,
भाव विधा को आशीर्वाद लेकर करते।
मौलिक संस्कृति जो नहीं समझते,
चमत्कार आसय में वह जीवन जीते।
कला विधा की दिखी रंगत जोरदार,
दिखाकर समझाकर उसे अपना लेते।
सब कुछ छोंड़कर अंतर्विधा पहुंचते,
आत्म शक्ति विधा से वह प्रबल हो जाते
इस संसार में बहुत भाव संस्कृतियां,
घर परिवार जिसमें कम पहुंच पाते।
संसारिकता कम पर मनोज्ञान विधा देखें
भौतिकता छोंड़ वास्तविकतामेंपहुंच गये
जीवन चलाने हेतु कर्म निष्ठता,
लोभ लालच मेंरहकरस्वाभाविक दिखते
आम की विधिता को धन लाभ बताकर,
अपने में लगाकर खुद राज्य कर लेते।
नैतिक विशिष्ठता छोंड़ सब कुछकिया है
विधा को ब्यवस्थितकर वह श्रेष्ठ बन गये
विधा अपनाने की ब्यापक संस्कृति,
तन मनकेअधिकारहेतुहिंसाऔर अहिंसा
नैतिक विचारों की कमी समाज में,
कर्म धर्म सभी हैं चमत्कार और हिंसा के
घर परिवार में रहती नहीं आत्मियता,
अपना पराया जो अशिष्ट करती हिंसा
घर परिवार समाज हुये बिन आत्मिक,
कलह और पीडां भाव विधा में दिखते।
आम सामाजिक सभी पीड़ा से द्रष्टित,
कर्म-भाव-अहिंसा इन्सान बना सकते।