जीवन संगिनी निमित्त पत्र
जीवन संगिनी निमित्त पत्र
उस रात मेरे सपने में प्रिये दुर्गे दी दिखाई रे
शान देख कर जगदम्बा की , सुध – बुध अपनी खोई रे
अति आनन्द हर्ष ह्रदय में , गद – गद मेरे होइ रे
विह्वल भाव विभोर हुआ मैं , नैनों नीर बहाया रे
हाथ जोड़ कीन्हा अभिवादन चरणों शीश नवाया रे
वाणी हो गयी बन्द प्रिये , कुछ भी तो ना कह पाया रे
हाल देख कर जब माता ने , छाती मुझे लगाया रे
आँचल से आंसू पोंछे मेरे , माथे चुम्बन लाया रे
सिर पर हाथ फेर कर बोली , इतना क्यों घबराया रे
क्या है कष्ट तुझे मेरे छोना , मैं तो सदा सहाई रे
आँख खोल मैं देखन लागा , पास खड़ी तू पायी रे
हाथ चाय का प्याला लेकर , अधरों पर मुस्कान लिए
उषा काल में जगा रही थी , मधुर स्वरों में आप प्रिये
तू भी अंश उसी दुर्गे का , बात समझ मेरी आयी रे
अन्नपूर्णा , गृह – लक्ष्मी बन मेरे घर तू आई रे
धर्म , कर्म , सुख , दुःख की संगी – साथी मैंने पायी रे
धन्य हो गया तुमको पा कर सब कुछ मैंने पाया रे
अच्छा भाग्य लिखा विधाता ने बार बार इठलाऊं रे
दया राम , स. अ. ( सेवा निवृत ) , के. वि. सं.
निवास :- ग्राम पाली , ग्रेटर नोयडा
जी . बी . नगर , ( उ. प्र. ) , भारत