Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jan 2019 · 3 min read

माँ बसन्ती-पिता राम कृष्ण

मां बसन्ती,पिता राम कृष्ण,जन्म जिन्होने दिया मुझे,
मुझसे पहले,आए जो भाई बहन,उन सबको मेरा अभिन्नदन।
माँ समान रमा दीदी,सबसे पहले वो ही आई,
पिता तुल्य अग्रज बन्धु,राधा कृष्ण हैं बडे भाई।
तीसरे क्रम पर दीदी सुशीला आई ,नाम के अनुरुप स्वभाव भी पाई,
चौथे स्थान पे महात्मा भाई,जतो नाम ततो गुण पाए।
पांचवे हुए तोता कृष्ण भ्राता,अल्प आयु से था इनका नाता,
जीवन का यह गहरा घाव है,हर पल खलता इनका अभाव है ।
बहन सरोज है मुझसे छोटी,दुूबली पतली न हो सकी मोटी ।
निशा-पुष्पा दो भौजाई,करती रहीं हौसला अफजाई ।
दो जिजाजी और एक हैं बहनोई, सरल हृदयी और साफगोई ।
माँ की अग्रजा दो मौसीयाँ हमारी,मामा भी थे घर गृहस्थी. धारी!
पिता अनूज दो चाचाजी हमारे,मुरली -मुकन्द नाम थे प्यारे ।
तीन बहन-तीन चाचीयाँ,और भाई चचेरे छै,
कोलाहल के संग जीऐ,और प्यार मोहब्बत से रहे ।
ज्यों ज्यों उम्र बढती गई,हम उम्र दराज हुए
घर गृहस्थी में तब हमें, मा,पिता बान्ध गये ,
अपनी-अपनी गृहस्थी में तब सब मसगूल हुए ।
गृहस्थी को सवांरने हम आगे बढे,हर किसी का संघर्ष जूदा,
काम विभक्त हैं हम सबके , जूझ रहे थे सब अपने ढंग से!
घर गृहस्थी में हम सभी इतने ब्यस्त हुए,
एक दूजे को मिलने को हम तरस गये ।
मिलना होता यदा-कदा, जब मिलते तो मिलने को कह जाते।
पिता थे जन सेवक,प्रथम ग्राम प्रधान रहे,
उनकी ही प्रेरणा थी हममें भी,उसी राह हम चले,
मैने तो अनूसरण ही यह धारा,और प्रधान पद भी पाया,
जन सेवा से जुडा रहा,नीज धर्म निभाया ।
मुझको भार्या कुसूम मिली,दो बेटी एक बेटा देकर,हर पल साथ चली । अब बच्चों की शिक्छा को था मैं आतूर,
चूंकि गांव में शिक्छा न थी भरपूर,
चला आया मैं बच्चों को लेकर देहरादून,
मिल गया प्रवेश जब बच्चौं को तब पाया हमने सूकुन ।
बेटियोंं को ग्रेजूएट कराया,और बेटे को बी टैक,
अब थी जिम्मेवारी पारिवारिक, और संसकारिक,
करनी थी शादियां वैदिक पारम्परिक ।
ईश्वरिय सयोंग से मैने दामाद पाये,
विशाल- मयंक नाम ये आये ।
बेटियों को मातृत्व का सुख मिला,
अभिरुचि को अविरल,व अनुभूति ने आद्या का फल पाया ।
स्वाती को गृहलक्छमी बनाया,अजय का उससे ब्याह है रचाया,
अब प्रभू से प्रार्थना है हमारी,बहू-बेटे को मिले संन्तान संसकारी।
गृहस्थ जीवन यों पूर्ण हुआ,पौत्र-पौत्री का दर्शन शेष रहा ।
ईश्वर से है वन्दन वह हमसे पुण्य कराये,
यही अब जीवन का उदेश्य बन जाये।
पैंसठ को मैं कदम बढा चुका हूँ,जन सेवा का मन बना चूका हूँ।
वर्ष उन्नीस सौ चौव्वन,माह अक्टूबर.की इक्कीस तारीक थी,
पांच गते कार्तिक,की जगमगाती. रात व दिवाली की थी तिथी ।
माता के गर्भ से मां भारती की गोद में,मैं आया,
जाने कितनो जन्मो के बाद मनुस्य जीवन पाया ।
माता ने पिता व बन्धुओं के नामानूसार नाम सुझाया,
ऐसै जय कृष्ण मैने नाम है पाया ।
यहीं से शुरु हुआ यह सफर और ये सिलसिला,
समय कब बीत गया यह कुछ पता ही नही चला ।
बडे भाई जी के हैं तीन पुत्र,तीन बहूरानीयां,
एक है पौत्र,और चार पौत्रीयां ।
हरी भाईजी पे हैं एक पूत्री एक पूत्र,
बेटी पे है बेटा,पूत्री है बहू बेटे पर।
यही है संसार हमारा, हम सब हैं संगठित, संयुक्त परिवार हमारा ।

Language: Hindi
242 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
दिवाली
दिवाली
नूरफातिमा खातून नूरी
“पसरल अछि अकर्मण्यता”
“पसरल अछि अकर्मण्यता”
DrLakshman Jha Parimal
बड़ी बात है ....!!
बड़ी बात है ....!!
हरवंश हृदय
इल्म़
इल्म़
Shyam Sundar Subramanian
~~🪆 *कोहबर* 🪆~~
~~🪆 *कोहबर* 🪆~~
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
ऐसा भी नहीं
ऐसा भी नहीं
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
रमेशराज के हास्य बालगीत
रमेशराज के हास्य बालगीत
कवि रमेशराज
*जिनके मन में माँ बसी , उनमें बसते राम (कुंडलिया)*
*जिनके मन में माँ बसी , उनमें बसते राम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
मुक्तक
मुक्तक
Rajesh Tiwari
जुगाड़
जुगाड़
Dr. Pradeep Kumar Sharma
जीवनदायिनी बैनगंगा
जीवनदायिनी बैनगंगा
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
सौंदर्य मां वसुधा की
सौंदर्य मां वसुधा की
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
शाबाश चंद्रयान-३
शाबाश चंद्रयान-३
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
वो गुलमोहर जो कभी, ख्वाहिशों में गिरा करती थी।
वो गुलमोहर जो कभी, ख्वाहिशों में गिरा करती थी।
Manisha Manjari
वो इश्क को हंसी मे
वो इश्क को हंसी मे
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
लिखा नहीं था नसीब में, अपना मिलन
लिखा नहीं था नसीब में, अपना मिलन
gurudeenverma198
खुद की तलाश में।
खुद की तलाश में।
Taj Mohammad
औरत
औरत
Shweta Soni
■ क़तआ (मुक्तक)
■ क़तआ (मुक्तक)
*Author प्रणय प्रभात*
नजर लगी हा चाँद को, फीकी पड़ी उजास।
नजर लगी हा चाँद को, फीकी पड़ी उजास।
डॉ.सीमा अग्रवाल
धर्म खतरे में है.. का अर्थ
धर्म खतरे में है.. का अर्थ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
नील गगन
नील गगन
नवीन जोशी 'नवल'
2858.*पूर्णिका*
2858.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नई तरह का कारोबार है ये
नई तरह का कारोबार है ये
shabina. Naaz
फ़र्ज़ ...
फ़र्ज़ ...
Shaily
खरी - खरी
खरी - खरी
Mamta Singh Devaa
जज़्बात-ए-दिल
जज़्बात-ए-दिल
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
जिंदगी भी फूलों की तरह हैं।
जिंदगी भी फूलों की तरह हैं।
Neeraj Agarwal
"प्रीत-बावरी"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
बदले नजरिया समाज का
बदले नजरिया समाज का
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...