जीवन में जब संस्कारों का हो जाता है अंत
जीवन में जब संस्कारों का हो जाता है अंत
बची हुई फिर जीवन रेखा हो जाती अनंत
सच जुबानी ही बन जाता जीवन का सन्त
चुभने लगती उसकी बातें कर देते हैं हन्त
कब तक छुपाओगे वो बातें यही तो है सत्य
मानवता का करने जा रहे हो तुम अंत
पहले मनका मानव मारा करते हो तुम जश्न
उपदेशक बन कर तुम ही करते तुम बुरा हश्र
सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा