जीवन में अपना अपना नजरिया
बड़ा प्रसिद्ध कहावत है ” बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय , जो दिल खोजा आपना , मुझसे बुरा न कोय ।” अर्थात “व्यक्ति का नजरि या कैसा होना चाहिए ।” व्यक्ति किस स्वभाव का होना चाइये ।
खैर हम अपने समाज मे अमूमन दो लोगो से मिलते हैं , जिनमे एक हँसता ,मुस्कुराता हुआ मिलता है , वही दूसरी तरफ एक रुआंसा , दुखी ,चिडचिडापन स्वभाव और शिकायतों से भरा हुआ होता है । कहते है ना व्यक्ति का चंचल स्वभाव उसे जिंदादिली बनाता है ,वही एक तरफ दूसरा व्यक्ति जो अपने ही शिकायतों से घिरा हो ,उसे लोग मनहूस या मुर्दादिल कहते हैं ।
जैसे सिनेमा उनेमा में सुबह देखो तो ,शर्मा जी की पत्नी रामप्यारी अपने पति शर्मा जी से कहती हैं देख रहे हो बिटू के पापा उ यादव जी हँसमुख मिजाज के है ,और एक आप है कि बस काम काम की बात करते हो ।
खैर हम सब खुद हसमुख मिजाज वाले व्यक्ति के वर्ग में शामिल होना चाहते हैं परन्तु समाज है उसमे कोई अपना है तो कोई पराया होता है । अमूमन मुर्दादिल व्यति की पहचान यह है कि उन्हें हमेशा किसी न किसी बात से शिकायत रहती है ,अगर कोई उन्हें प्यार से खाना भी खिलाये तो वे उस भोजन में भी कमियां गिनाने लगेंगे । दरसल उन्हें खुद को छोड़कर कायनात की हर चीज से शिकायत रहती हैं , किसी की बड़ी से बड़ी खूबी पर भी उनके मुह से तारीफ के दो शब्द नही निकलते हैं , अक्सर लोग ऐसे लोगो को मनहूस समझकर इनसे दूरी बनाने की कोशिश करने लगते हैं ।
वही दूसरी तरफ जिंदादिल और खुशमिजाज लोगो की खासियत यह होती हैं कि वे बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी प्रसन्न रहने की वजह तलाश लेते हैं । उन्हें कोई अधपका भोजन भी खिलाये तो उनके माथे पर शिकन नही आती , उल्टा वे ख़ुसी और कृतज्ञता से भरकर कहते हैं कि वाह क्या खाना है मज़ा आगया ।ऐसे लोग अपनी कमियां खुलकर स्वीकार करते हैं , और दुसरो की तारीफ करने में कमियां नही करते । इनके जीवन मे भी तमाम कष्ट और अभाव होते है पर ये उनके सामने भी अपने उदारता और सहजता को कमजोर नही होने देते । अगर हम छात्र है तो , हमने 3 इडियट पिक्चर्स तो देखी ही है उसमें बाबा रणछोड़ श्यामलदास ,जो काफी खुशमिजाज इंसान था , उसके रास्ते बाकी छात्रों से काफी अलग थे ,पर उसका नजरिया साफ था , की ” मुझे एक अच्छा इंजीनियर” बनना है , जबकि वही दूसरी तरफ राजू और फरहान कोई न कोई बहना लगा रहता था , की बाबा बीमार है , कम्मो की शादी नही हो रही , अगैरह – वैगरह । अर्थात नजरिया ही हमे किसी दूसरे से अलग बना सकता है , परन्तु ये इतना आसान नही है ,जितना कि वायरस रोज अपनी सेविंग करता है । इसके लिए कुछ आदतों को छोड़ना होगा ,जबकि कुछ आदतों को ग्रहण करना होगा ।। परन्तु असम्भव नही ।
एक दूसरा उदाहरण लेते हैं , महेंद्र सिंह धोनी को कौन नही जानता , भारत का बच्चा बच्चा माही का फैन है , मैं भी हूँ , इसलिए नही की वह देश के लिए क्रिकेट खेलता है , बल्कि इस लिए की उनका नजरिया बेहतर है , वो एक बार निर्णय लेने के बात पीछे नही हटते , क्योकि उन्होनो अपने नजरियों को स्वस्थ बनाया , वो जानते है कि कप्तान मैं हूं ,मेरा काम बाकी खिलाड़ियों को एक साथ ले कर चलना है और टीम हारी तो उसमे मेरी गलती है ,यदि टीम जीती तो खिलाडियों का योगदान है ।
आपने तो सुना ही होगा , जब उन्होनो ने क्रिकेट को अलविदा कहा था ” मैं दो पल का शायर हूँ ” के गाने को गुनगुनाया था , अर्थात उनके कहने का अर्थ था आज मैं हूं और फिर कल कोई आएगा मेरी जगह । ऐसे होते सकारत्मक इंसान ,जो जानते है कि अगला इंसान नही कर सकता तो भी उसका साथ नही छोड़ते हैं क्योकि उनका नजरिया साफ होता ,केवल लक्ष्य पाना है मुश्किले चाहै कितने भी हो । माही को देखने बात लोग यही कहते ” रख खून में वो उबाल ,जब तक जवानी है अरे तेरी इसी अंदाज की तो दुनिया दीवानी है ।” इसलिए देखो ” माही मार रहा है ।”
सबसे पहले अगर आपको दुसरो की बेवजह आलोचना करने की आदत है तो उसे छोड़ना होगा । बेवजह या निर्रथक आलोचना का मतलब है कि बिना समाधान सुझाए आलोचना के लिए आलोचना करना । खैर एक बहुत प्रशिद्ध खिस्सा है जो सम्भवतः ऐसे ही व्यक्तियों को लिए ही गड़ी गई हो , , एक बार एक चित्रकार ने चित्र बनाई और उसे चौराहे पर रख दी ,और साथ मे एक टिप्पणी पुस्तिका पर लिखा कि जिन्हें लगता है कि इस चित्र में कमी हो कृपया वे अपना हस्ताक्षर करें । उसने लिख कर चौराहे पर छोड़ दिया , देखते देखते ही 2-3 घण्टो में कई व्यक्तियो ने उस पर हस्ताक्षर कर दिया , जब उसने देखा तो वह व्यक्ति रुआंसा हो गया कि मैंने इसे इतने मेहनत से बनाया ,और लोगो ने इसमें कमियां ही निकाल दी , वो पूरा दिन डिप्रेस्ड रहा ,अगले ही दिन उस व्यक्ति ने अपनी नजरिया को बदल कर पुनः , उस चौराहे पर चित्र लगा दी , लेकिन इस बार उस टिप्णी पुस्तिका पर उसने लिखा कि ,यद्यपि इस चित्र में कमियां हैं तो आये और इसको सुधारे । परन्तु हैरत की बात थी पूरा दिन गुजर गया कोई नही आया ।
अर्थात जैसी आलोचना इस कथा में चित्र देखने वाले कर रहे हैं उसे ही निरथर्क या बेवजह आलोचना करना कहते हैं , ऐसे लोगो मे इतना नैतिक व रचनात्मक साहस नही होता कि नए विकल्प खड़ा कर सके या समाधान कर सके । ऐसे लोगो के बारे में किसी शायर ने खूब लिखा है ” जिसकी नजरों में था हर इंसा का चेहरा दागदार , आईने के सामने आकर वो भी शरमाया बहुत ” ।
हमे दूसरा प्रयास यह करना होगा कि जब भी हम किसी का मूल्यांकन करे तो स्वस्थ नजरिये से करे , उसमे सकारत्मकता बनाये रखे । स्वस्थ नजरियों वालो की खास बात होती है कि वे दूसरों की कमियों से ज्यादा ध्यान उनकी खूबियों पर देते हैं । वे किसी की आलोचना करने से पहले उस व्यक्ति को खुद के स्थान पर रख कर अनुमान लगते हैं कि अगर वे स्वयं उन्ही परिस्थितियों में होते तो क्या वे खुद ऐसा व्यवहार कर पाते जैसा उस व्यक्ति से कर रहे हैं ? इसके अलावा वे केवल कमियां ही नही गिनाते ,बल्कि समाधान भी सुझाते है । उनकी भाषा भले ही कठोर हो , पर उनका मकसद प्रोत्साहित करना होता न कि हतोसाहित होता , बल्कि वे उनके हितैषी ही होते हैं ।
एक बात और जिस निर्ममता और कठोरता से हम उस व्यक्ति की आलोचना करते हैं वही कठोरता और कसौटी हम खुद पर लागू करे , और ये भी मानकर चले छोटी छोटी गलतियों से कोई भी व्यक्ति मुक्त नही हो सकता है । खैर मुझे वो दिन आज भी याद जब हम कुछ छात्रों को कॉलेज की तरफ से चुना गया था ,ताकि हम कालेज में नए आये कम्प्यूटर पर सॉफ्टवेयर को चढ़ा सके , मुझमे एक बुरी आदत थी , मैं एक साथ 2-3 काम करता था , दरसल डेमो चल रहा था और मैं डेमो चलते ही लगभग 4 से 5 कम्प्यूटरों पर सॉफ्टवेयर चढ़ा चुका था ,लेकिन गलती से एक पर सिस्टम अनलॉक हो गया , तमाम कोशिस के बाद ,मेरी हालत खराब थी कि , अब मुझे हर्जाना देना पड़ेगा , लेकिन उस वक्त सर का नजरिया बहुत सकारत्मक था उन्होनो ये सिर्फ कह कर माफ कर दिया की ” जीवन मे गलती नही करोगे तो सीखोगे क्या ” । तब मुझे पता चला कि अक्सर आपने काम मे पारंगत लोगो का नजरिया क्यो सकारत्मक होता है ,क्योकि वो गलतियां खुद कर चुके होते हैं , इज़लिये वो उसे सुधारने में माहिर होते हैं।
एक प्रसिद्ध ग्रीक विचारक लोंजाइनस ने भी बड़े पते कि बात कही है , ” महानता चाहे जितनी भी बड़ी हो ,वह निर्दोष नही होती , उनमें छोटे मोटे छिद्र रही जाते हैं ।”
कुल मिलाकर व्यक्ति को जीवन मे कितनी सफलता और प्रतिष्ठा मिलती है ये व्यक्ति के नजरिया से तय होती है । अगर हम चाहते हैं कि हमे समाज और प्रशासन में शानदार व्यक्ति के रूप में जाना जाए तो हमारा नजरिया स्वस्थ होना चाहिए । ऐसा नजरिया बनाना मुश्किल तो है पर असभव नही , तो फिर आज से ही अपने गलतियों पर टोकना शुरू कर दे , अन्यथा कोई और टोके और हमारे नकारात्मकता के कारण दूर हो जाये तो यह दुखदायी होता है ।
मैंने महेंद्र सिंह धोनी और कई ऐसे दिग्गजों से सिर्फ यही सीखा है
“खूबियां भी मुझमे ,खामियां भी मुझमे , ढूढने वाले तू सोच चाहिए क्या मुझमे ।”