*जीवन – मृत्यु (कुंडलिया)*
जीवन – मृत्यु (कुंडलिया)
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होता ज्यों-ज्यों वृद्ध तन ,त्यों-त्यों दिखती मौत
जीवन से रिश्ता जुड़ा , लगता जैसे सौत
लगता जैसे सौत , मरण सच असली लगता
घर दुकान धन-धान्य ,सत्य जाना यह ठगता
कहते रवि कविराय , कभी हँसता मन रोता
क्या जीने का अर्थ , मृत्यु से क्या कुछ होता
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451