जीवन भर मरते रहे, जो बस्ती के नाम।
जीवन भर मरते रहे, जो बस्ती के नाम।
ज्यों ही आंखें मूंद लीं,आंसू तक नीलाम
भीड़ तंत्र की भीड़ में, क्यों ढूंढे तू फूल
मुर्दा सब जज़्बात हैं, राम राम हे राम।।
सूर्यकांत
जीवन भर मरते रहे, जो बस्ती के नाम।
ज्यों ही आंखें मूंद लीं,आंसू तक नीलाम
भीड़ तंत्र की भीड़ में, क्यों ढूंढे तू फूल
मुर्दा सब जज़्बात हैं, राम राम हे राम।।
सूर्यकांत