जीवन बेहतर है
जीवन से निराश एक शाम
मैं नदी किनारे बैठा
सोचने की कोशिश नाकाम
मैं नदी मैं कूद पड़ा
मैं छटपटाया, मैं चिल्लाया
एक बार, दो बार उपर को आया
जो ये पानी इतना ठंडा ना होता
तो मैं मौत को गले लगा लेता
पर पानी ठंडा था, बहुत ठंडा
सीढ़ियों से, लिफ्ट से
मैं इक्कीसवें तल पर जा पहुँचा
अपने जीवन के बारे में सोचते हुए
सोचा कि कूद जाऊँ
तभी मैने नीचे देखा
मेरे कदम ठिठके, मैं सहम गया
जो ये तल इतना ऊँचा ना होता
तो मैं मौत को गले लगा लेता
पर यह ऊँचा था, बहुत ऊँचा
क्योंकि मैं अब भी ज़िंदा हूँ
मुझे लगता है मैं और जीऊँगा
मुझे मरना ही है एक दिन
मैं जीने के लिए जिंदा हूँ
तुम मुझे चीखते हुए देखोगे
तुम मुझे रोते हुए देखोगे
तुम मुझे छुपते हुए देखोगे
और तुम मुझे मरते हुए भी देखोगे
पर अब जीवन बेहतर है
कल से बेहतर, इस पल से बेहतर
–प्रतीक