जीवन , प्रेम और माधव
जब ह्रदय से पुकार लगाई
माधव ने साड़ी पर साड़ी बढ़ाई
खीच खीच के साड़ी किनारा न पाया
माधव ने कृष्णा का सम्मान बचाया
विनाश का संकल्प कृष्णा ने उठाया
माधव ने कृष्णा का संकल्प पूर्ण कराया
अर्जुन का विश्वास डगमगा रहा था
एक सारथी धनुर्धर को समझा रहा था
गांडीव को रख वो कर्तव्य से हट रहा था
अपने परायो में पड़ कर गिर रहा था
धर्म पर अधर्म की जीत की बात कह रहा था
जब धर्म की बात आई तो कृष्ण ने अपना रूप दिखाया
कोई अपना पराया नही भ्रम को दूर कराया
जीवन के रथ पर सवार होकर बताया
सारथी बन कर जीवन का अमूल्य ज्ञान सुनाया
तुम नियमित मात्र हो कर्ता स्वयं को बताया
मै ही ब्रह्म मै पूर्ण हूं मैं ही गंगा मैं ही आकाश हूं
मैं ही सर्वत्र मैं ही पूरा ब्रह्माण्ड का रूप हूं
तुम अर्जुन की तरह खुद को समर्पित कर जाओ
जीवन के रथ पर हर क्षण कृष्ण को अपने पास पाओ..