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7 Nov 2017 · 1 min read

जीवन प्रवाह

अक्र बक्र दो नदी किनारे
बीच बहे जीवन की धारा |
गंगा सागर में मिलने तक
सुख-दुःख ये ही सहें हमारा |

दो कंधों से सटा रपटता
धरा धरातल पर बहता |
कभी प्रपात बनता गिरता
कभी बांध सी पराधीनता |

कभी ऊर्जा उसे उठाकर
गगन चूमने प्रेरित करता |
कभी लेप चन्दन का बनकर
तनमन में शीतलता भरता |

हर जीवन इन से ही गुजरे
पानी की धारा सा बहकर
कपिल मुनि के चरणों जाता
दुःख-सुखों के कंधों चढ़ कर |

सुख दुःख हैं दो नदी किनारे
पानी सा बहता यह जीवन ।
गिरता, ठोकर खा कर उठता
करता पूर्ण यों सभी चरण ।

Language: Hindi
301 Views
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