जीवन निर्माण की प्रथम सीढ़ी : बचपन
बचपन है जीवन का प्रथम चरण,
सपनो को बालक करता वरण ।
परंतु चंचलता है उसका स्वभाव ,
नन्हे से हृदय में उठते कई भाव।
कैसे निर्धारित कर सकता है लक्ष्य ,
अभी तो स्वयं पर भी नही साक्ष्य ।
माता पिता ने जो जन्म से स्वप्न देखा,
उनके अनुभवों से होता देखा परखा ।
परंतु शिशु मन कुछ और ही सोचता है ,
एक बार में कई सारे सपने वो बुनता है ।
रुचि का संसार उसका धीरे से फैलता है ,
असमंजस का दौर फिर भी गहरा जाता है ।
उस समय यदि माता पिता करें समझदारी,
निर्णय लेने की क्षमता उनपर ना हो भारी ।
अपनी संतान को अपने मित्र तुल्य समझें,
उनकी समस्या और उलझनों को वो समझें।
अंकुश लगाने के भाव से न करें अनुशासन,
अपितु घनिष्ठ मित्र बनकर करे मार्ग दर्शन ।
उनकी चंचलता ,बेतरवाही और स्वतंत्रता ,
बालकों को अति प्यारी होती है वाक पटुता।
इन सभी आदतों व् छुपे हुए गुणों को पहचाने ,
तत्पश्चात उनके भविष्य निर्माण के बुने ताने बाने ।
कर्तव्यनिष्ठता,स्वअनुशासन और संस्कार ,
एक आदर्श जीवन का होते है आधार।
जीवन का यह प्रथम चरण होता बड़ा कोमल ,
परंतु बनती है इसी अवस्था में नींव भविष्य रूपी,
सुंदर मकान की ।