जीवन निर्झरणी
मैं जीवन निर्झरणी हूं।
कल-कल बहती रहूती हूँ।।
मुझको अंगीकार करो तुम।
या न अंगीकार करो,
प्रकृति मेरी है, चलने की
मैं तो चलती रहती है।
हर पल मेरा प्रेम संदेशा
विस्तारित होता रहता है।
समझने वाला समझ ही लेगा
मैं तो कहती रहती हूँ।।
मत हैरान हो गति पर मेरी
ये घटती बढ़ती रहती है।
अमावस की रात अंधरी है।
तो पूनम का उजियारा है।
भला मिले या बुरा मिले
सब कुछ सहती रहती हूँ।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव “पूनम “