” जीवन धारा “
बहती नदी की धारा
को देख लगा ,
क्या अंतर जीवन और
इस धारा में ।
आगे बढ़ती जाती
नदी भी ,
और बढ़ती जाती
जीवन भी।
न जाने नदी कितने चट्टानों
से है टकराती ,
जीवन भी कितने दु:ख दर्द
को सहती जाती।
फिर भी दोनों चलती जाती ।
क्या अंतर जीवन और
नदी की धारा में ?
दोनों ही तो बस चलती जाती
आगे बढ़ती,जाती बढ़ती जाती।
@पूनम झा |कोटा ,राजस्थान
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