जीवन धारा
जीवन की दो धारा
एक बने रातों की स्याही
एक बने उजियारा।
एक दिखाए सपन सलोने
तपी तपी सी राहें
बन जाये मुस्कान हृदय की
बोझिल सी कुछ आहें।
कठिन डगर पर दिल बहलाये
दे कण्टक सी चाहें।
हाथ पकड़ मन्ज़िल पहुँचाए
कर दे दूर किनारा।
राहत के दो क्षण भर दे दे
या चिंतित सा जीवन
उन्मादित गहरी सी श्वासें
या फिर क्लांत मनस तन
मदमाती स्वछंद हवाएं
घुटन घुटन सा बन्धन।
आशा की आवेशित आंधी
बन जाये ज्यों कारा ।
दीपक की लौ बन कर निखरे
भस्म करे दावानल
स्वर संगीत बने जन जन का
या भीषण कोलाहल
अमृत बन कण कण को सींचे
या आकंठ हलाहल।
एक कहे हर विजय है तेरी
एक कहे तू हारा।
जीवन की दो धारा
एक बने रातों की स्याही
एक बने उजियारा।
विपिन