जीवन दान
“रात के दो बज रहे है , आईसीयू में लाईफ स्पोर्ट्स मशीनों की आवाजें वातावरण को भयावह बना रही थी ।
संगीता चार दिन से यहाँ एडमिट है एक सडक दुर्घटना के बाद जीवन – मृत्यु के बीच झूल रही थी ।”
सौरभ हैरान – परेशान कभी इस डाक्टर तो कभी उसके पास चक्कर लगा रहा है , दवाई ला रहा है । इलाज लगातार
चल रहा है ।
आज रात फिर डाक्टर रंजन ने कहा था :
” मिस्टर सौरभ आप अपने कमरे में जा कर सो जाईये तीन रात हो गयी है जागते हुए , संगीता का इलाज चल रहा है ,दवाईयें रिस्पांस कर रही है बस थोड़ा
समय लगेगा ।”
डाक्टर कह कर चले गये लेकिन सौरभ की आँखो से नींद कौसो दूर थी । वह वहीं कुर्सी पर बैठ गया ,और एक चलचित्र सा चल निकला :
” जीवन के 30 साल कैसे गुजर गये मालूम ही नहीं पड़ा, बच्चों की जिम्मेदारी, गृहस्थी का खर्च सब एक सीमित तनख्वाह में संगीता ने बखूबी किया । बच्चे अपने घर द्वार के हो गये , लेकिन सब विदेश में ।
जीवन के हर कठिन मौड़ पर संगीता साथ रही , उसके बिना जीवन की कल्पना से ही सिरहन सी होने
लगती है । शायद यही समर्पण है , रात को दस बजे सोने और सुबह आठ बजे उठने वाले सौरभ की आँखो में चार दिन से नींद नही थी ।”
तभी संगीता में कुछ हलचल हुई सौरभ की तिन्दा टूट गयी थी ।
संगीता धीरे धीरे आँखे खोल रही थी । समाने सौरभ को देख कर उसकी आँखो से आंसू बह रहे रहे थे । सौरभ ने एक बार संगीता का हाथ अपने हाथ में लिया फिर डाक्टर को बुलाने भागा , उसे लग रहा था , संगीता के साथ साथ उसे भी जीवन – दान
मिला है ।
डाक्टर आ गये थे और संगीता के सामने ही
कह रहे थे :
” मिस्टर सौरभ अब संगीता खतरे बाहर हैं, लेकिन इस उम्र में भी आप दोनों का प्यार और समर्पण ही है जो यह मौत के मुँह में जा कर भी लौट आई ।”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल