जीवन-दाता
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हम अपना ये जीवन,
एक दिन मिटता देखेंगे।
इस धरा के सारे प्राणी–
घुटन से दम तोड़ देंगे।।
कारण यहीं बनेगा बस!
इन वृक्षों का न रहना।
इस भू पर सिवाय तेज के,
जल-समीर, कुछ न रहना।।
हे मानव! इन वृक्षों को,
क्यों काटे जा रहा हैं तू..?
सारे जग का सर्वनाश –
क्यों किये जा रहा हैं तू..??
हे मानव! ये हरे-भरे वृक्ष तो,
इस धरोहर की सुन्दरता हैं।
ये भोले-भाले और बेजुबान–
वृक्ष ही तो जीवन-दाता हैं।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल (उज्जैन)।
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