जीवन दर्शन
हिमाचल की
धवलधार के
आंचल में बसा
‘चमोटू’ का जंगल
एकांत को थिरकाती
हिमाचली गानों की धुनों पर
भारत के सुदूर क्षेत्रों से आए
युवक–युवतियां
और
प्रतिदिन की दिनचर्या से विलग कर
कुछ अपने में खो जाने के लिए
हिमाचली गानों की धुनें
सूर्यास्त हो रहा है
शीतल
चीड़ की पत्तियों से हुई मदांध हवा
सारी क्लांति नष्ट करती
रक्त में नया उत्साह भरती
पक्षियों की टें….टें…. टें….. टें
अचानक चीऊं चीऊं चीऊं… ऊं…..ऊं
कभी मद्धम तो कभी तीव्र होती धुनें
यूं कर देती हैं ताज़ा मुझे
मानो ज्येष्ठ की कड़ी दोपहरी में
अथक परिश्रम के उपरांत
श्रम कणों से स्नात
हो गया हूं शीतल जल से सराबोर मैं
न जाने कहां चला जाता है
थकान का हर एहसास
जो अब तक था मेरे साथ
कुछ पल बिताने के बाद
चमोटू के जंगल तुम्हारे साथ ,
यहीं साथ एक सुंदर दृश्य
अनोखी बहुरंगी दुनिया का प्रतिरूप
आनेकों रंगीन टैंट
एक बस्ती ही बस गई है मानो
एहसास कराती जीवन की निस्सरता का क्षणभंगुरता का
अभी-अभी जन संकुल
चहल पहल चहल थी
गूंजता संगीत था
अब नीरवता का होता पदार्पण
सूरज और नीचे चला
अस्ताचल की ओर
पक्षी उड़ते अपने घरों की ओर
धीरे-धीरे टैंट भी सिमट जाते हैं
छोड़कर स्थान को आगे चले जाते हैं
रह जाते यहां कुछ स्मृति चिन्ह
परिचायक हैं जो उनकी उपस्थिति का
या फिर है
जीवन दर्शन का संपूर्ण अध्याय
या है समग्र जीवन दर्शन …….।