जीवन तो है इक मधुशाला
छंद-अनुकूला/मौक्तिक माला (मापनी युक्त),वर्णिक
मापनी २११ २२ ११११ २२(११ वर्ण)
जीवन मे ये बहुरॅग घोले।
मानुष बोले हर पल डोले।।
राज सभी जो हृदय बसे हैं,
पीकर हाला सब कुछ खोले।।(१)
मानव पीता कब यह हाला।
जीवन तो है खुद इक प्याला।।
रोचक है ये बहुत अनूठी,
खींच रही है बन मधुशाला।।(२)
पांव नहीं ये अब टिकते हैं।
हाथ नहीं ये अब रुकते हैं।।
हालत ऐसी पल पल मेरी।
बाज रही है घन घन भेरी।।(३)
मैं अब भी ये समझ न पाया।
है यह कैसी अनुपम माया।।
पीकर प्याला जलकण हाला।
होश न आया नित भरमाया।।(४)
मोदक है ये जन जन प्यारी।
मोहक है ये हर पल न्यारी।।
स्वाद हमेशा रसमय आला।
जीवन तो है इक मधुशाला।।(५)