जीवन तो बहती दरिया है-काल चक्र का सर्प सदा ही हमको है डसता
दिनांक -२८/१०/२३
#गीतिका
छंद -विष्णु पद
मापनी – २६ मात्रिक (मापनी मुक्त)१६,१० पर यति
समांत – आना , पदांत -है
जीवन तो बहती दरिया है, बहते जाना है।
सुख दुख दो सिक्के के पहलू, क्यों घबराना है।।(१)
पग में कंटक खूब चुभेंगे,सतत बढो आगे,
पार सभी कर बाधाओं को,मंजिल पाना है।।(२)
काल चक्र का सर्प सदा ही, हमको है डसता,
करे मार्ग अवरूद्ध हमेशा ,सबने माना है।(३)
जीवन में आते ऐसे पल, हम हैरान हुए,
आशा और निराशा होगी , चलते जाना है।(४)
समय बहुत बलवान दीखता,सिखलाता हमको,
चलें उन्हीं राहों पर अविचल, क्यों अजमाना है।(५)