जीवन जीने की कला का नाम है
मानव जीवन अत्यंत दुलर्भ है। भगवान की महान कृपा से जीवन प्राप्त होता हुआ है। अत: जीवन को सार्थक बनाने के लिए जीने की कला को अपनाना चाहिए।
तुलसीदास ने कहा है:
बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद् ग्रंथन गावा
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, पाई न जेहि परलोक संवारा
जीने के लिए हमे जीवन के सिद्धांतों को अपनाना पड़ता है। शालीनता, सज्जनता, सदाचार, सहिष्णुता। यह मानव के आभूषण है, जीवन जीने के लिए जितने भी आचरण मूल्य निर्धारित किये गए है। उनके मूलभूत में भौतिकता के तीन सिद्धांत बह्मचर्य, अहिंसा और सत्य है। इन तीनों का संबंध हमारे व्यक्तिव के शारीरिक मानसिक और बौद्धिक स्तर से है। व्यक्ति को अधिक समय तक जीवित रहने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है ब्रह्मचर्य पालन से शरीर पुष्ट होता है।
हमें जब किसी प्राणी को जन्म देने का अधिकार नहीं है तो उसे मारने का भी अधिकार नहीं है। हमें समस्त प्राणियों पर दया भाव रखना चाहिए। सत्य का पालन करके हम सब कुछ प्राप्त कर सकते है। मनुष्य का गौरव इस बात में है कि वह मानव जीवन के मूल्यों के आधार पर अपने दायित्वों को ईमानदारी से निर्वाह करके परमात्मा का स्मरण करे।
बाइबिल में भी कहा गया है…सर्विस टू मैन इज सर्विस टू गॉड
मानव मात्र की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा है।
व्यक्ति के जीवन में आने वाले कष्टों और दुखों से मुक्ति पाने के लिए जीवन के शाश्वत सत्य अध्यात्मिक पथ पर चलना ही सबसे उत्तम माना गया है। मनुष्य का गौरव इस बात में है कि वह अपने मान्य जीवन मूल्यों के अनुसार जिए, इसी में शोभा है जो मनुष्य जीने की कला जानता है वहीं जीवन मुक्ति प्राप्त कर सकता है। मनुष्य अंतिम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति है। मानव जीवन कर्म करने के लिए ही बना है। हमें जीवन में शुभ कर्म करने चाहिए।
मनमोहन लाल गुप्ता
मोहल्ला जाब्तागंज, नजीबाबाद, जिला बिजनौर, यूपी
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