जीवन जीने का ढंग भाग 2, – रविकेश झा
अगर भय के कारण आप प्रभु के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते है तो आप चूक जाते है, क्योंकि प्रभु तो भय से परे है, उन्हें तो बस ध्यान के माध्यम से देखा जा सकता है जाना जा सकता है, भय आपको थोपता है जबरदस्ती, अपने मन को समझें, भय आपको सत्य तक नहीं पहुंचा सकता ,क्योंकि सत्य अनोखा है, उसे बस ध्यान प्रेम के माध्यम से जाना जा सकता है, सत्य तो सामने है बस आप थोड़ा आंख तो खोलो, अहंकार के कारण बंद किए है, आप स्वयं को अनदेखा कैसे कर सकते है, आप शिव जी से अनदेखा कैसे कर सकते है, वो तो सब देख रहे है, करवा रहे है जो उनको करवाना है,
आप बस मोह में फसे रहे और सत्य को दिखावा समझे, सत्य आपको झूठ लग रहा है अभी संदेह है, जब आप राजी हो कुछ खोने को तभी आप संदेह पर विजय प्राप्त कर सकते हो या श्रद्धावान हो सकते है, उसके लिए थोड़ा देर आदत बनाना होगा, थोड़ा कर्म तो करना होगा लेकिन याद रहे जागरूकता रहना चाहिए आपको बहुत मदद करेगा।
आप को चाहिए धन, प्रतिष्ठा, पद, ये सब बाहरी वस्तु है, जिसे पाना आसान है, मुश्किल तो है स्वयं में होना,स्वयं को खोजना, जी ये करवा रहा है, जानना तो चाहिए उत्सुक तो होते है लेकिन समाज के व्यस्था के कारण मजबूर हो जाते है, समाज क्या कहेगा, ये अच्छा नहीं, आप हिम्मत नहीं करते, भय है जीवन के प्रति, मोह है जीवन के प्रति, धन के प्रति, पद के प्रति, ये सब दिखावा है, क्योंकि आपके अंदर के चेतना तो खुश नहीं होते, जानना है तो स्वयं के अंदर से पूछो,
स्वयं से सवाल करो, कोई तो है जो ये सब करवा रहा है, लेकिन आप बुद्धिमान बन जाते है दर्शन करने जाते है, आपको भय है भगवान का बात नहीं मानेंगे तो मृत्यु न हो जाए, आप अपने अंदर पूछो की खुशी हो रहा है, दिखावा करके आप स्वयं को धोका दे रहे है, आप धन के बदले खरीद तो सकते है समाज को, लेकिन अंदर से नहीं जीत सकते, भय से कोई हाथ जोड़ता है और कोई बुद्धि के कारण, लेकिन वास्तव में दोनो चूक जाते है, बुद्धि किसके लिए दिखा रह है, क्रूर किसके लिए हो रहे है, समाज के लिए, या पद के लिए,
जब आप स्वयं को खुश नहीं कर सकते तो सोचो समझा कैसे खुश होंगे, आप हो ही नहीं सकते, यहां समझ की बात है बस थोड़ा समझ की आवश्कता है,आप स्वयं का विरोध कर रहे हो, यहां जानना होगा की धन से बड़ा भी कुछ है, जीवन को गहरा से जानना होगा, मंदिर तो जाओगे लेकिन स्वयं के अंदर नहीं, जिसका मंदिर हैं वो सिर्फ मंदिर में रहेगा ये कैसे हो सकता है पूरा अस्तित्व भगवान का है हर जगह तो उनको रहना ही होगा, फिर आप एक जगह भगवान को कैसे मान लेते है, यहीं चूक होता है, आप बनना चाहते है कुछ और मैं यहां होने की बस बात कर रहा हु।
स्वयं तक पहुंचने की कष्ट करें तभी आप जीवंत हो सकते है।
कर्म करने वाले सिर्फ कर्म करते है, उनको बाहर से कोई मतलब नहीं, बस कर्म करना है खाना है सोना है,
दूसरा भक्ति, जो आप मान के चलते हो, आप आशा है की भगवान कुछ देंगे, वही आओ चूक जाते है आपको बस भक्ति करना है, मांगना नही है, क्योंकि परमात्मा आपके तरह आंख बंद नहीं किए है, वो देंगे स्वयं, बस आपको इंतजार करना होगा थोड़ा, लड़ना नही है,
तीसरा है जानना, आप कोई वस्तु को देखते है जागरूकता अगर रहता है आपके अंदर तभी आप कुछ देखने में सक्षम होते हो, उसके साथ कुछ करने में, जैसे फूल कोई तोड़ कर देखे, आप पंचभूत जान सकते है पर अब वो फूल नहीं रहेगा, क्योंकि आपने तोड़ दिया अपने सुख के लिए,यहीं पर आप चूक जाते है,आप को बस जागरूकता रखना है वस्तु के प्रति बस देखना है,आप चकित होंगे फल देख कर। एक है होना
जब आप सब कुछ जानने में सक्षम होते है कर्म से समाधि तक जब देख लेते है, जब लोभ खत्म भय खत्म, पद प्रतिष्ठा की कोई मन नहीं, अहंकार नहीं, बस शून्यता रहें तभी आप बस हो सकते है, बस होना साक्षी भाव आप कह सकते है, लेकिन ये अभी आपको दिक्कत देगा, इसीलिए आपको एक एक एक रास्ता से जाना होगा, तभी आप रास्ता का भी आनंद उठा सकते है उठाना भी चाहिए, क्योंकि रास्ता में तो सोना चांदी हीरा से बहुमूल्य है, रास्ता में सुख हैं वो मंजिल में नहीं, क्योंकि आप मंजिल पहुंच कर फिर नया रास्ता बनाएंगे, इसीलिए रास्ते का आनंद उठाए।
धन्यवाद।
रविकेश झा।