*जीवन जीने का आधार हो गया*
जीवन जीने का आधार हो गया
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जब से यूँ उनका दीदार हो गया,
जीवन जीने का आधार हो गया।
बेचैनी बढ़ती रहती फिरूं ख़फ़ा,
दिल जैसे तब से बीमार हो गया।
चोरी चोरी हम तो ताकते रहे,
चुपके चुपके से इजहार हो गया।
सपने जो शोभित हम देखते रहे,
उनसे ही अब तो घरबार हो गया।
मनसीरत नजरों से खोजती हमें,
मिलने को यारों तैयार हो गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)