Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jun 2022 · 1 min read

जीवन जीत हैं।

जीवन जीत हैं।
सुख-दुःख मीत हैं।
मौत अंतिम किनारा है।
जो जग से हारा
जीवन नित सुंदर
खिलते हैं उपवन लगे फूल।
अपनी स्त्रष्ट्रा के लिए।
मनमोहक दृश्य हैं।
जीवन जीत हैं।
सुख- दुख मीत है।
तुम गिर जाओ गर्त में,
या ढकलों अपने को बीच मझधार में,
या महान , सामान्य बनकर दिखाओ
जीवन अंतिम निर्णय मौत हैं।
जो गुजर कर ही रहेगी।
सारी उम्र का कर्म है।
जिस पर अडिग रहना
अपना कर्तव्य है ।
जीवन जीना परम जीत हैं।
_ डॉ सीमा कुमारी , बिहार,भागलपुर, दिनांक 15-5-022 की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।

Language: Hindi
4 Likes · 496 Views

You may also like these posts

जिस यात्रा का चुनाव
जिस यात्रा का चुनाव
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
*विधा:  दोहा
*विधा: दोहा
seema sharma
वह दिन जरूर आयेगा
वह दिन जरूर आयेगा
Pratibha Pandey
पकोड़े नालों की गेस से तलने की क्या जरूरत…? ये काम तो इन दिनो
पकोड़े नालों की गेस से तलने की क्या जरूरत…? ये काम तो इन दिनो
*प्रणय*
बेटियाँ
बेटियाँ
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
पटरी
पटरी
संजीवनी गुप्ता
जिंदगी
जिंदगी
पूर्वार्थ
गर मुहब्बत करते हो तो बस इतना जान लेना,
गर मुहब्बत करते हो तो बस इतना जान लेना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
लड़कियां शिक्षा के मामले में लडको से आगे निकल रही है क्योंकि
लड़कियां शिक्षा के मामले में लडको से आगे निकल रही है क्योंकि
Rj Anand Prajapati
मुझे अपनी दुल्हन तुम्हें नहीं बनाना है
मुझे अपनी दुल्हन तुम्हें नहीं बनाना है
gurudeenverma198
#शबाब हुस्न का#
#शबाब हुस्न का#
Madhavi Srivastava
शेर ग़ज़ल
शेर ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
गुरु कुल में (गोपी )
गुरु कुल में (गोपी )
guru saxena
दर्द का बस
दर्द का बस
Dr fauzia Naseem shad
"सियासत बाज"
Dr. Kishan tandon kranti
*नृत्य करोगे तन्मय होकर, तो भी प्रभु मिल जाएँगे 【हिंदी गजल/ग
*नृत्य करोगे तन्मय होकर, तो भी प्रभु मिल जाएँगे 【हिंदी गजल/ग
Ravi Prakash
पिछले पन्ने 3
पिछले पन्ने 3
Paras Nath Jha
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
कवि रमेशराज
sp132 कली खिलेगी/ लाए हैं भाषण
sp132 कली खिलेगी/ लाए हैं भाषण
Manoj Shrivastava
मातु काल रात्रि
मातु काल रात्रि
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
वो सितारे फ़लक पर सजाती रही।
वो सितारे फ़लक पर सजाती रही।
पंकज परिंदा
दोहा एकादश. . . . जरा काल
दोहा एकादश. . . . जरा काल
sushil sarna
अंधविश्वास
अंधविश्वास
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
54….बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसम्मन मुज़ाफ़
54….बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसम्मन मुज़ाफ़
sushil yadav
हर ज़ुबां पर यही ख़बर क्यों है
हर ज़ुबां पर यही ख़बर क्यों है
Dr Archana Gupta
हम बस अपने कर्म कर रहे हैं...
हम बस अपने कर्म कर रहे हैं...
Ajit Kumar "Karn"
4408.*पूर्णिका*
4408.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
खुला मैदान
खुला मैदान
Sudhir srivastava
ऐसा निराला था बचपन
ऐसा निराला था बचपन
Chitra Bisht
Loading...