जीवन जिज्ञासा
लाऊँ कौन सा कागज मैं और कौन सी स्याही
लिखी जा सके जिसमें सारी इच्छाएं बिन ब्याही।
ढूंढ़ों सब उन भाषाविद को जो रचे मौन की भाषा
ढूंढो वो जल तृप्त करे जो शुष्क हृदय अभिलाषा।
कहाँ शान्त होगी न जाने इस जीवन की जिज्ञासा
निरा अंकिचन मेरा मन कैसे रचे जीवन परिभाषा?
आना होगा तुमको ही प्रभु अब मुझको राह दिखाने
सूझ रहा मुझको कोई पथ न, भूले सब ठौर ठिकाने।