जीवन चक्र
जीवन चक्र (कविता)
जन्म मरण जीवन का पहिया,
नित्य यहाँ पर चलता है।
बात सत्य यह कालचक्र भी
हमसे हरपल कहता है।
जन्म मरण के बीच का जीवन
बचपन, प्रौढ़, जवानी है।
जायेगा जो भी आया ,
वसुधा की अमर कहानी है।
नवजीवन ले मिला जो बचपन,
चिन्ता मुक्त सुखद पावन।
अल्हड़ मस्त जवानी जैसे,
झूम – झूमकर गाता सावन।।
गई जवानी प्रौढ़ हुए फिर,
मन चिन्तन में लीन हुआ।
मृत्यु सामने देख बुढापा,
ऐसे क्यों गमगीन हुआ ?
परम सत्य है जीवन का यह,
वरण इसे ही करना है।
आया है जो भी वसुधा पर,
इक दिन उसको मरना है।।
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पूर्णत: स्वरचित व स्वप्रमाणित
रचनाकार का नाम- पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार