” जीवन क्या होगा “
दृष्टि ही ना रही अगर तो दर्पण क्या होगा,
कृष्ण नहीं रहे अगर तो मधुबन क्या होगा,
ऑंगन में बिखरे ना जो तरह-तरह के खेल-खिलौने,
शरारत अगर नही रही तो बचपन क्या होगा,
भले रात में कण-कण करके मोती बरसें,
भोर अगर न होती तो शबनम क्या होगा,
जीवन में खुशियां ना हों तो जीवन क्या होगा।