जीवन के लक्ष्य,
जीवन एक ज्योति,
या जीवन एक झंझावात,
जीवन है तिमिरमय या
जीवन है पद्मावत।
जीवन की उपमा कितनी
जीवन से कितनी आशा
कैसे जीवन के मोह को
कहूँ जीवन की अभिलाषा।
जीवन के चार लक्ष्य,
अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष
जीवन को वरदान कहे
या जीवन को कहे भोग।
जीवन की मर्यादा ,
प्रयत्क्ष या परोक्ष सही
परोपकारी पुरूष है
कवियों ने खूब कही।
जीवन के अकथ का
कथक से क्या लोच
निभ जाये जीवन निर्मेष,
बस यही पावन सोच