जीवन के धन
जर जोरू और ज़मीन,
जीवन के धन तीन,
जिनको ये हासिल नहीं,
जीवन उनका हीन।
जीवन उनका हीन,
चलाते चक्कर भारी।
रह जाएं ना दीन,
झौंकते ताक़त सारी।
कहत अवध कविराय,
बना रहता है ये डर।
नहीं कहीं छिन जाय,
जोरू ज़मीन और जर।
जर जोरू और ज़मीन,
जीवन के धन तीन,
जिनको ये हासिल नहीं,
जीवन उनका हीन।
जीवन उनका हीन,
चलाते चक्कर भारी।
रह जाएं ना दीन,
झौंकते ताक़त सारी।
कहत अवध कविराय,
बना रहता है ये डर।
नहीं कहीं छिन जाय,
जोरू ज़मीन और जर।