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2 Sep 2016 · 1 min read

जीवन के धन

जर जोरू और ज़मीन,
जीवन के धन तीन,
जिनको ये हासिल नहीं,
जीवन उनका हीन।
जीवन उनका हीन,
चलाते चक्कर भारी।
रह जाएं ना दीन,
झौंकते ताक़त सारी।
कहत अवध कविराय,
बना रहता है ये डर।
नहीं कहीं छिन जाय,
जोरू ज़मीन और जर।

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