जीवन के दिन चार
जीवन के दिन चार औ, जीने के हैं तीन।
जन्म, ब्याह औ तात तो, चौथा है गमगीन।।
गर्भनाल को तोड़ने,लोग खड़े हैं द्वार।
एक अकेला रो रहा, हर्षित सभी अपार।।
पिया मिलन की आस में, बीते कई बसंत।
मधुर मिलन के साथ ही,मिला नया अब पंत।।
खुले गगन उड़ते हुए,निभा रहे हैं रीत।
तात,मात हैं अब बने,फलित हुआ है प्रीत।।
ठाट-बाट सब छोड़ कर, छोड़ चले संसार।
एक वही अब मौन है, रोवे घर परिवार।।
✍️जटाशंकर”जटा”
०१-०६-२०२१