जीवन की सच्चाई
जीवन की सच्चाई
जब तक शरीर में
आत्मा है
यह चलती मशीन है
जब हुई मशीन बंद
यह नश्वर शरीर है
अब चाहे इसे जलाओ
गाडो या
बहाओ नदी में
सब मिट्टी में मिल जाऐगा
धन दौलत औलाद
ऐशो-आराम सब यही रह जाऐगा
अपने चेहरे से देखते हो
सुन्दरता को
जब देखो शरीर के अंदर के
खून , मांस, हड्डी और मल को
खुद नफरत करोगे
अपने ही शरीर से
चाहे घर सोते हो
मखमली शय्या पर
या टूटी-फूटी खाट , जमीन पर
पर वहाँ घास-फूस
लकडी पर ही लेट कर जलना है
चाहे खाते हो
खीर पूरी दूध मलाई
या सूखी रोटी रोज
पर यहाँ कर दिया जाऐगा
मुँह बंद दो घूँट गंगा जल
डाल कर
देखी हो दुनियाँ की
रंगरेलिया जिन आँखो से
बंद कर दी जाऐगी
आत्मा शरीर से निकलते ही
नाते रिश्ते सब
बेगाने हो जाते हैं
शमशान घाट भेजने की
सब करते है जल्दी
मरे को घर में रखते नहीं
पैसे वाला अपने को
कहता हो कोई
अमीरों की जात
बताता हो कोई
जाता वही है वह भी
जहाँ गरीब भिखारी या
जो हो फटेहाल
सब है आत्मा का
खेल दोस्तों
जब तक आत्मा शरीर में
कर लो अच्छे कर्म
जी लो ईमानदारी भाईचारे
से चार दिन
समझ लो धर्मशाला है
ये दुनिया
स्थाई पट्टा किसी को नही है
फिर क्यो करते हो
हाय हाय, घोटाले,भरष्टाचार
जिन्दगी में
शरीर से आत्मा
निकलने के बाद कहाँ गयी
पता नहीं
सब जब तक हम चल रहे है,
लिख रहे है , बोल रहे है ,
देख रहे है
तब मानो
आत्मा हमारे साथ है
ओम शांति शांति शांति शांति
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव बी 33 रिषी नगर ई 8 एक्स टेंशन बाबडिया कलां भोपाल सेवानिवृत्त