“जीवन की विधिता”
परम आत्मा भीषण प्रकाश शक्ति हैं,
संसारिक जीवों का वही आत्मधाता है।
ईश भगवान जैसे धर्मों के परम मानते,
ज्ञान कल्पना करती संस्कृति महान।
आम जीवन के हम एक प्राणी,
प्रकृति विधा से स्यमं चकराते रहते।
प्रतिभा प्रतिष्ठा जो मन में प्रबल रहती,
मौलिक जगह कभी पहुंच नहीं पाते।
संसारिक अध्यात्मक मानसिक संस्कृतियां,
जीवन संचालन में सभी काम आते।
श्वांस और वाणी की अंतर्शक्ति भीष्णता,
कला विशिष्टता सामने रुक नहीं पाती।
अंतर् विभक्तियों से होता भाव प्रक्षेपण,
अदा विधाओं से सभी में संतृप्त जगती।
मानसिक रोचकता कभी कर नहीं पाते,
संसारिक विधा में भटकते रहते।
मानव जीवन रहता जब संसारिक,
भाव अभिब्यक्ति सब मस्तिष्क में रहती।
ब्यापक आकांक्षा प्रतिपल खुद रहती,
बिना कोई श्रम किए संस्कृति नहीं आती।