जीवन की लो उलझी डोर
ये उलझी उलझी सी डोर
कहाँ कहाँ सब लगी गाँठ है
मिलता कोई ओर न छोर ।
जीवन की लो उलझी डोर ।
कर प्रयत्न सब हारे हम है
हाथ थके हारे बेदम है
उंगली दुखती पोर-पोर ।
जीवन की लो उलझी डोर ।
कोई युक्ति हाथ न आती
जिससे गाँठ ये मैं सुलझाती
सूखी पुतलियाँ भीगे कोर ।
जीवन की लो उलझी डोर ।
चली थी ले मैं बड़ी जतन से
सारे सिरे संभाले प्रण से
एक हवा ने सब उलझाया
हृदय गई मेरा झकझोर ।
जीवन की लो उलझी डोर ।