जीवन की परिभाषा
कवि संजय गुप्ता
कभी सजना कभी संवरना,
कभी मायूस हो जाना।
कभी धूप की तपिश,
सुनहरे सपनों की आशा।
यही तो है जीवन की परिभाषा।।
कभी हंसना कभी रोना,
कभी रूठना तो कभी मनाना।
गीले शिकवे मिटाकर,
नज़दीकियां बढ़ाना।
आदर सत्कार प्रेम की भाषा,
यही तो है जीवन की परिभाषा।।
फ़र्ज़ की राह पर चलकर,
ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाना।
दूसरों के सुख-दुख में शामिल हो,
मदद करना और साथ निभाना।
अमुक चीज़ को पाने की अभिलाषा,
यही तो है जीवन की परिभाषा।।
कभी ख्वाहिशें अधूरी तो कभी पूरी,
कभी खुशियों की बरसात।
कभी आशाओं का समंदर,
कभी ग़मों की काली रात।
कभी जीवन की घोर निराशा,
यही तो है जीवन की परिभाषा।।
चलना गिरना फिर उठकर सम्भलना,
कभी कुछ खोना कुछ पाना।
कभी जरूरतें पूरी,
कभी ज़िन्दगी का ठहर सा जाना।
कभी मन को तसल्ली और दिलासा,
यही तो है जीवन की परिभाषा।।
रचना-: कवि संजय गुप्ता
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