जीवन की कुछ सच्चाईयां
गैरों से क्या उम्मीद करे,जब अपने ही गैर हुए।
जो पास कभी थे हमारे,वे भी अब दूर हुए।।
अपनी तो किस्मत फूटी है,किसे अब हम दोष धरे।
कर्म खराब किए होगे हमने किस्मत को क्यों दोष धरे।।
जिनको था पाला पलोसा,वे भी अकेला छोड़ चले।
मां बाप तो इस हालात में,वृद्ध आश्रम की ओर चले।।
बुढ़ापे में कोई साथ न देता,केवल पैसा साथ देता है।
रखो संभाल कर कुछ पैसा,वही बुढ़ापे में साथ देता है।।
पैसा हो अगर तुम्हारे पास,सब रिश्तेदार बन जाते है।
बिन पैसे के तो सगे भाई भी तुमसे दूर हो जाते है।।
रस्तोगी को जो दिखता है,वही तो हमेशा वह लिखता है।
झूठ के आगे कभी भी,सच कही नही छिपता है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम