*जीवन का सार (घनाक्षरी)*
जीवन का सार (घनाक्षरी)
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अपने न दुखड़े को जगत में रोओ कभी
जग को न दुखड़े को सुनने से प्यार है
किसको है फुर्सत सुने दुखभरी-कथा
जिसका कि अर्थ बस दुख का प्रसार है
दुख-भरे ऑंसुओं को हृदय में रखो सदा
हॅंसने-हॅंसाने का ही लोक-व्यवहार है
जिसने बिखेरने की कला हास्य-वाली सीखी
वह ही समझ पाया जीवन का सार है
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रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451