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7 Sep 2021 · 1 min read

जीवन का मूल्यांकन

जो बीत गयी ,
सो बात गयी।
बीते हुए कल को मुड़कर क्या देखना।

क्या पाया क्या खोया ,
पाकर भी कभी खो दिया।
शेष जो भी रह गया ,उसी को संजोना ।

हाँ ! देखे तो थे कुछ सपने ,
क्या वह थे कभी अपने।
शीशे ही तो थे टूट गए ,टूटने पर क्या रोना।

एक धोखा ही तो है वह ,
रूठकर चली जाती है जो।
उस बेवफा के जाने का गम क्या करना।

एक गम की दौलत है पास अब ,
जी भरकर लूटा गया मेरा रब।
मुझे तो इसी गम से अब उम्र-भर निभाना।

क्यों पाली थी बेशुमार हसरतें ,
क्यों की बेवजह बेकार उम्मीदें ,
ना मुमकिन है जहां में इनका साकार होना।

खिलौना समझा हमें सदा उसने ,
कठपुतली सा नचाया सदा उसने ,
नियति है मानव -जीवन की यही ,फिर गिला क्या करना।

Language: Hindi
2 Likes · 5 Comments · 496 Views
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