“जीवन का कुछ अर्थ गहो”
जीवन का कुछ अर्थ गहो
दुर्लभ मानव तन व्यर्थ न हो
जन्म मिला कुछ काज करो
कल नहीं, अभी आज करो
हो सार्थक प्रयास, निरर्थ न हो
दुर्लभ मानव तन व्यर्थ न हो
विकट काल को जान लो
पूर्ण करो, जब ठान लो
है जगत प्रिय नहीं मिथ्या जीवन
निश्चित ही पथ प्रशस्त करो यौवन
गौरवशाली जीवन, इतिहास कही असमर्थ न हो
दुर्लभ मानव तन व्यर्थ न हो
विलंब नहीं, अभी अविलंब करो
हुनर का प्रबल प्रबंध करो
सुयोग नहीं कल टल जाए
मिट्टी का तन कब गल जाए
वह नर तन क्या, जिसमें पुरुषार्थ न हो
दुर्लभ मानव तन व्यर्थ न हो
तुम युग प्रवाह का स्तंभ प्रहरी
कण-कण का है अवलंब हरी
वही, जड़ चेतन में जान भरे
चाहे तो निज भर प्राण हरे
सब युक्ति करो पर स्वार्थ न हो
दुर्लभ मानव तन व्यर्थ न हो।। विधान
होंठों पे गुंजन गान लिए
किसलय सा नित मुस्कान लिए
आने से विघ्न भी घबराए
जब कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं
जीवन की आशाएं खोती, जीने का सामर्थ्य न हो
दुर्लभ मानव तन व्यर्थ न हो चरितार्थ