“जीवन का आधार बेटियाँ”
सुरभित गंध व्यार बेटियाँ।
जीवन का आधार बेटियाँ।।
उपवन सूना ही रह जाये।
कली न कोई खिलने पाये।
माली का क्या काम वहां पर-
कली जहां पर नित मुर्झाये।।
बेटी तो कलियां होती हैं,खुशियों का आधार बेटियाँ।
मधुपों का गुंजार बेटियाँ , बागों का मल्हार बेटियाँ।।
सुरभित गंध ब्यार बेटियाँ।…….
ये जीवन की आशायें हैं,
यह ही तो अनुशंसायें हैं।
सब रस इनमें ही बसते हैं,
मधुर प्यार की भाषायें हैं।।
मात-पिता के दुख को हरते, सबने देखीं सदा बेटियाँ।
वधुओं का शृंगार बेटियाँ, माता का अधिकार बेटियाँ।।
सुरभित गंध व्यार बेटियाँ,………
नयी नीति मिल आज गढ़ाओ,
चलो पढ़ाओ और बढ़ाओ।
भ्रूण नष्ट होने न पायें,
इनको जीवन अर्घ्य चढ़ाओ।।
तभी प्रकृति का मान बढे़गा, दुर्गा लक्ष्मी रूप बेटियाँ।
स्वयं शक्ति साकार बेटियाँ, धन वैभव भंडार बेटियाँ।।
सुरभित गंध व्यार बेटियाँ,…. …….
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स्वरचित मौलिक सर्जना, दिनांक २९ जनवरी २०१८।
रचनाकार -आशुकवि कौशल कुमार पाण्डेय “आस”
पुत्र- स्व० जगदीश शरण पाण्डेय।