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21 Mar 2019 · 1 min read

जीवन का अंतिम पड़ाव

जीवन के
अंतिम पड़ाव पर
बैठी स्त्री
स्मरण करती है
बार बार
बचपन से
बुढ़ापे तक का सफर
संन्यास आश्रम की
इस पगडंडी पर
अनायास ही
प्रस्तुत हो
उठते हैं
चित्र
आँखों के सामने
पिता,पति ,पुत्र
के प्रतिबंध
मीठे,खट्टे, कड़वे पल
माँ, बहन,बेटी,बहू
संग बिताया
एक एक पल
बूढ़ी नज़र
बीनती कंकर
वृद्ध काया
करती मूल्यांकन
जीवन में
क्या खोया
क्या पाया।

–हरीश सेठी ‘झिलमिल’

Language: Hindi
1 Like · 334 Views

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