जीवन और मृत्यु
जीना तो सभी चाहते है ,
जीवन चाहे जैसा भी हो ।
महकते फूलों की सेज हो ,
या कांटों से भरी राह हो ।
जीवन दुख से भरा हो या ,
निर्धन और अधम ही हो ।
जीवन से सभी प्यार करें ,
चाहे वो जख्मों से भरा हो ।
जीवन को त्यागने का विचार,
भी बड़ी विवशता से आता है ।
बड़ी मानसिक पीड़ा होती है ,
उद्विग्नता में यह पग उठता है ।
एक ओर तो जीवन से प्रेम है ,
दूसरी ओर भयानक आर्थिक संकट ।
क्या करे ! क्या न करे वोह व्यक्ति ,
जिसकी परिस्थितियां हो अत्यंत विकट।
कोई माता पिता की बीमारी से त्रस्त है ,
तो कोई इकलौते पुत्र / पुत्री के दुख से ।
असाध्य हो जाए जब पीड़ादायक रोग तो ,
मुक्ति की ही दुआ करे निजात दिलाने दुख से।
जीवन और मृत्यु पर पड़ा हुआ है ,
पूर्वजन्म के प्रारब्ध का बंधन और ,
कर्मों का हिसाब इस जन्म का भी ,
देता है मनुष्य जीवन में बड़ा योगदान।
अंततः जिसको जैसा जीवन मिला ,
वो तो अवश्य भोगना ही पड़ेगा ।
है यह। विधि का विधान कठोर ही सही ,
ईश्वर आज्ञा से उसे स्वीकार करना ही होगा ।