जीवन और ईश्वर
जीवन शाश्वत है
प्रारंभ नहीं,अंत नहीं।
आस्था के कारण मानना नहीं,
ईश्वर का अस्तित्व।
आस्था के कारण नहीं, ईश्वर।
ईश्वर तो है उपस्थित।
कहने से नहीं किसी के।
उपस्थित है,इसलिए कहता है।
आस्था इसलिए उत्पन्न करना है
क्योंकि
ईश्वर है उपस्थित।
जड़-रूप में,जीवन रूप में।
सूक्ष्म रूप में, विराट रूप में।
विधान है ईश्वरीय, हर कण में अवस्थित।
ऊष्मा से पदार्थ का फैलाव विज्ञान नहीं।
पदार्थ का उसमें स्थित विधान है।
किसी पदार्थ को शपथ नहीं लेना पड़ता
किसी विधान का।
ईश्वर है यह ।
मनुष्य को जंगली से शहरी होने हेतु
प्रतिज्ञाओं की एक लंबी सूची
करनी पड़ती है कंठस्थ।
उसपर अभ्यास।
उसका ही श्वास-प्रश्वास।
पदार्थ का ऊर्जा में हो जाना
जीवन का ईश्वरीय,प्रारंभिक विधि।
ऊर्जा से पदार्थ का गढ़न
सृष्टि की आवश्यक निधि।
प्राण ज्ञानवन हों या नहीं!
ईश्वर है निरंतर।
हर प्राण में चलता है जो,है ईश्वर।
हर प्राण को अलग ढंग से गढ़ता है जो,
है ईश्वर।
ईश्वर प्रबुद्ध चुनौती है।
ज्ञान को अनावृत कर,
कर सकते है अनावृत ईश्वर को।
कितना कुछ समेटकर,
विधि और विधान।
ईश्वर सा बनाया मनुष्य।
मनुष्य ईश्वर सा बने
यह हमारी ईश्वर से मनौती है।
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अरुण कुमार प्रसाद /19-6-21से 21-6-21