जीवन एक भूलभुलैया
जीवन एक भूलभुलैया
मैं अचानक एक दिन,
जिंदगी की राह में मंजिल को पाने चल पड़ा
उम्र के पड़ाव कितने ही गुजरते गए
अनगिनत मीलों के पत्थर पार मैं करता गया….
फिर अचानक एक दिन,
अनवरत राह की थकान से चूर हो ऐसा हुआ
ज़ोर से ठोकर लगी
बेहोश होकर गिर पड़ा…
होश में आया तो देखा और दंग रह गया
मैं जहां से था चला अब भी वहीं पर हूँ पड़ा…
भारतेन्द्र शर्मा (भारत)
धौलपुर