जीवनदायिनी-माँ
माँ,
तूने नौ महीने
मुझे अपनी कोख में रखा
दर्द सहा, कष्ट झेला
जन्म देकर मुझे संसार दिखाया
मुझे नज़र, बुरी बलाओं से बचाया
ममता के आँचल में छिपाया
खुद भूखी रहकर मेरी चिंता की
माँ, मेरे रोने पर तू परेशान हो जाती थी
खाना-पानी त्याग, मुझे दुलराती थी
मजाल! कोई डाँट सके
तू ढाल बन जाया करती थी
तेरी ममता की छत्रछाया में
मैं बड़ा हुआ
अब मेरा कर्तव्य है
मैं तेरी ढाल बनूँ
तेरा सहारा बनूँ
तेरे हर दुख अब मेरे हैं
वैसे तो मैं कई जन्मों में भी
तेरा कर्ज नहीं उतार सकता
क्योंकि तेरा कर्ज असीम है
लेकिन,
मैं तेरा साया तो बन सकता हूँ
माँ!
मैं लाठी बन तेरे साथ चल सकता हूँ।