जीवंत हो तभी भावना है
जीवंत हो तभी भावना है ,
कुछ नरम गरम ख़्वाब है ;
उम्मीद के धागा में बंधा …
मंजिल का तलाश है l
पगडंडी कठोर ,
कही ठोकर – कही कीचड़ ,
संवेदना का ताना-बाना में
कुहासा में ‘मैं’ ढूंढता ,
अपने ही प्रतिबिम्ब से डरता ,
समाज के कुरीतियाँ भागता ,
खोखलापन के सम्मान बचता ,
सहानुभूति को अग्नि में डालता ,
अपने को स्वाहा करता ;
एक एक कदम , आशा की तालाश में ..
सिर्फ बढ़ता मदमस्त फिरता..
सिर्फ बढ़ता मदमस्त फिरता !!