जीवंतता
“जीवंतता यानि निर्बाध निरंतरता”
नदियों में लहरें उठती हैं, चलती हैं बहती हैं तो वो गतिमान रहती हैं
उनके बहने से, रास्ता बनता है और नदियां भी कांतिमान रहती हैं
नई धाराओं को जगह मिलती है अनंत यात्रा पर निकलने के लिए
कहने को लोग कह देते हैं, नदी चली है, सागर से मिलने के लिए
प्रश्न तब खड़ा होता है अस्तित्व का, जब ये धाराएं, बांधी जाती हैं
जब दोहन करने इन धाराओं की दिशा वेग व दशा बदली जाती हैं
तब इन्हें छुड़ाने, कलेजा फट कर, बादलों से बरसता है आकाश का
पाट बंधारे तोड़ उफन पड़ती हैं नदियां, बिगुल बजता है विनाश का
इन धाराओं में, हिलोरे लेते जीवन की परिणिति, निर्बाध बहने में है
प्रकृति का नियम है, जीवंतता, रुकने या रोकने में नहीं, चलने में है
~ नितिन जोधपुरी “छीण”