जीयो
हूं तो हूं, वरना तो मैं बिल्कुल नहीं हूं।
मैं नहीं कहता कि मैं बिल्कुल सही हूं।।
बाज़ है क्या वास करता दूसरों की नीड़ में।
साधु चलता है अकेला क्यूं चले वो भीड़ में।।
कर्म से बंधते सदा ही, बातों से बंधते बांध नहीं।
लोभी माया से हर्षित हों, क्या होते है साधु कहीं।।
झूठ सच सबकुछ सही, तो मनाओ जश्न उसका।
पाप क्या है पुण्य क्या, मत उठाओ प्रश्न उसका।।
हूं किया खुद को प्रयासित, कि जी सकूं मैं सत्व को।
रह कष्टों में “संजय” सीखा, जीवन के इस महत्व को।।