जीभर न मिलीं रोटियाँ, हमको तो दो जून
जीभर न मिलीं रोटियाँ, हमको तो दो जून
जल पीकर फुटपाथ पे, चबा रहे नाख़ून
चबा रहे नाख़ून, ग़रीब मरा है भूखा
भगवन तेरा न्याय, नसीब मिला है सूखा
महावीर कविराय, प्रकट हों लक्ष्मी जी घर
माँ तुझसे उम्मीद, खिलाये रोटी जी भर
—महावीर उत्तरांचली
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*हिन्दी कहावत ‘दो जून की रोटी’ का अभिप्राय: ‘दो वक्त की रोटी’ से है! किन्तु यहाँ हिन्दी कहावत में ‘जून’ का यह शब्द अवधी भाषा से ग्रहण किया गया है, जिसका अर्थ वक़्त से हैं। जगत में हर व्यक्ति की यह ख्वाहिश – इच्छा होती है कि उसे और उसके परिवार को हर वक़्त ‘2 जून की रोटी’ उपलब्ध हो।